योग के प्रकार (Types of Yoga in hindi)


   योग के प्रकार (Types of Yoga)


                                      योग के प्रकार

 

राजयोग

 

इस योग को हम अष्टांग योग भी कहते हैं जो हमारे मन में इंद्रियों को नियंत्रण करता है यह ज्ञान केंद्रों को जगाने का मंत्र होता है जिसमें यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि आदित्य के मुख्य अंग होते हैं

 

कर्म योग

 

यह योग सेवा का मार्ग होता है यह हमें नकारात्मक विचारों से दूर रखता है और हमें निस्वार्थ क्रम के अनुरूप कार्य करने को प्रेरित करता है साजिश आती है दूसरों की सेवा करने से जो कल्याण प्राप्त होता है उसके लिए आवश्यक होता है इस योग के माध्यम से क्रम विचार इच्छाएं हालात चरित व्यवहार उससे संबंधित आचरण में सुधार आता है

 

ज्ञान योग

 

इस योग के अंतर्गत ध्यान की स्थिति को ग्रहण कर ज्ञान की क्षमता को प्रभावित किया जाता है यह हमारी बौद्धिक क्षमता को भी विकसित करता है इस योग के ग्रंथों के अध्ययन के माध्यम से बुद्धि के विकास में लाभकारी होता है ध्यान की स्थिति में स्वयं को ले जाने के पश्चात उड़ जावे ज्ञान का भंडार प्राप्त होता है

 

भक्ति योग

 

अपराध गलत विचार में अहंकार से मुक्त कराने के लिए इस भक्ति योग का प्रयोग किया जाता है यह अपने आप को भगवान की श्रद्धा व भक्ति में लीन करता है इस योग के माध्यम से श्रद्धा भोलापन सादगी में सच्चाई का प्रयोग किया जाता है इस प्रकार के योग को मुख्य रूप से संत करते हैं जो अपनी कार्यक्षमता में ज्ञान शक्ति में प्रभाव डालते हैं एवं अपने मन में मस्तिष्क पर अपना नियंत्रण करते हैं

 

मंत्र योग

 

मंत्र योग वह शक्ति है जो मन को बाहर है बंधनों से मुक्त करती है यह मन में मस्तिष्क को अज्ञानता में अपनी पवित्रता के बंधन से मुक्त कर ज्ञान और पवित्रता की ओर अग्रसर करती है यह विशेष तरीके से मन में व्यवहार को उचित लाभ प्रदान कर आती है

 

आसन

 

आसन शब्द संस्कृत के अस धातु से बना है जिसके दो अर्थ होते हैं पहला बैठना व दूसरा उचित शारीरिक अवस्था

 

आसन उस अवस्था को कहा जाता है जिस अवस्था में मन मस्तिष्क व अन्य स्थान पर आरामदायक स्थिति में हो इस अवस्था को आराम से एकत्रित किया जाता है यह हमारी शारीरिक योग्यता में वृद्धि के लिए अति आवश्यक होता है

 

आसन के लिए स्थित शारीरिक स्थिति मानसिक संतुलन आवश्यक होता है साथी हमारे मन की चंचलता को भी इससे नियंत्रित किया जाता है

 

भगवत गीता के अंतर्गत भी योग के सभी प्रकारों का वर्णन किया गया है साथ ही आसन के विषय में भी महत्वपूर्ण ज्ञान अनंत काल से ही चलता आ रहा है

 

आसन का अर्थ होता है शरीर को विशेष मुद्राओं में रखना और मन को ठहराव स्थिति में लाना आसन के प्रयोग से आंतरिक अंगों की सफाई सैनिकों की क्षमता में सुधार हमारी कार्यक्षमता पर इसका प्रभाव देखने को मिलता है यह हमारे मन मस्तिष्क को हमारे नियंत्रण में लाने का प्रयास करते हैं एवं बाहरी दुनिया से मैं मोह माया से दूर रखने का प्रयास करते हैं

 

महत्व

 

योगासन को स्वच्छ एवं साफ स्थान परकरने से विशेष लाभ होता है यह हमारी मानसिक क्षमता में विशेष वृद्धि दिलाता है वह हमें अच्छी सेहत में दीर्घायु प्रदान करता है

 

योगासन की स्थिति में मंदिरों को शांत कर नियंत्रण करता है या विशेष मानसिक चिंता व तनाव को दूर करने में भी लाभकारी होता है

 

आसन कम से कम खर्चे में विशेष लाभ प्रदान करता है

 

शरीर को लचीला पंचशील थकान कम करने आदि में वृद्धि प्रदान करता है

 

यह हमारे शरीर के आंतरिक अंगों की कार्य क्षमता को बढ़ाने में भी लाभकारी होता है रक्त प्रवाह की गति स्वसन तंत्र की क्षमता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान होता है

 

यह कुछ विशेष बीमारी में भी विशेष लाभ प्रदान करता है जैसे- कब गैस शुगर रक्तचाप सिर दर्द पेट दर्द आदि बीमारियों में विशेष लाभ प्रदान करता है

 

यह थकान की स्थिति को को भी कम करता है एवं सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है कई बार खेलकूद की क्रिया को करने के बावजूद थकान होती है उसको दूर करने के लिए भी कई योग आसनों का प्रयोग किया जाता है जैसे शवासन या मकरासन

 

प्राणायाम

 

प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना है प्राण और आयाम जिसमें प्राण का अर्थ होता है शरीर को जिंदा रखना व्यक्ति का उल्लेख करना और आयाम का अर्थ होता है नियमित रूप से करना

 

अर्थात प्राणायाम शब्द मिलकर अर्थ बनाता है प्राण रूपी वायु को नियमित रूप से शरीर के सभी अंगों में ग्रहण करना इसके अंतर्गत श्वसन की क्रिया को संचालित किया जाता है

 

प्राणायाम में स्वसन क्रियाओं के बीच का समय , स्वसन की गति , श्वास लेने , छोड़ने से संबंधित ज्ञान

आदि पर नियंत्रण किया जाता है

 

प्राणायाम के प्रयोग से हमारी स्वसन रक्त से संबंधित किराए प्रभावित होती है प्राण का अर्थ ही जीवन शक्ति होता है क्योंकि यह हमारी क्षमताओं को विशेष लाभ पहुंचाने में लाभकारी होता है

 

प्राणायाम के अंतर्गत स्वसन संबंधित क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है जो हमारे शारीरिक अंगों को विशेष प्रकार से उर्जा प्रदान करती है कार्य करने के लिए पोषक तत्वों को भी शरीर के सभी अंगों तक पहुंचाती है योग के अंतर्गत जो शारीरिक क्रियाएं होती है उनमें स्वास्थ्य क्रियाओं को विशेष रूप से प्रयोग में लाने से हमारे सादड़ी के अंगों पर काफी प्रभाव पड़ता है

 

लाभ

 

प्राणायाम के नियंत्रण प्रयोग से तनाव में स्वसन संबंधित समस्याएं में लाभ होता है

 

इसका प्रभाव हमारे मन इंद्रियों में इच्छाशक्ति पर अधिक देखने को मिलता है

 

प्राणायाम के प्रयोग से लंबी व स्वस्थ आयु प्रदान होती है

 

प्राणायाम का प्रभाव स्वसन संबंधित सभी अंगों व समस्याओं को दूर करने में किया जाता है

 

यह हमारे शरीर मन में मस्तिष्क का आपसी संबंध में तालमेल को सुधारना है

 

यह मानसिक व आंतरिक अंगों की पवित्रता के लिए आवश्यक होता है

 

प्रकार के होते हैं नाम को मुख्य रूप से रोजाना अपने जीवन में शामिल करने से मन मस्तिष्क पर विशेष प्रभाव पड़ता है और हमारा शारीरिक व मानसिक क्रियाओं का नियंत्रण भी बढ़ जाता है साथी साथ यह हमारे सारिक तापमान को भी नियंत्रण रखने में सहायक होता है

 

शुद्धि क्रिया

 

शुद्धि क्रिया क्रिया भी कहते हैं क्योंकि भागों में विभाजित होती है नेति कपालभाति धोती नौली बस्ती त्राटक |

हमें अपने शरीर को जितना बाहरी अंगों को स्वच्छ रखना होता है अर्थात उनकी सफाई रखनी होती है उतना ही हमें अपने शारीरिक अंगों की स्वच्छता पर भी ध्यान देना चाहिए शुद्ध क्रियाओं के रूप में ही हम अपने आंतरिक अंगों की क्रियाविधि की सफाई कर सकते हैं उन्हें स्वच्छ बना सकते हैं जो हमारी शारीरिक क्षमताओं पर भी इसका प्रभाव पड़ता है वह हमें स्वस्थ निरोगी जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं

 

शुद्ध क्रियाओं के अंतर्गत हमारे आंतरिक अंग पाचन तंत्र से संबंधित सभी नलिया ,नाक मुंह , आदि की स्वच्छता पर भी ध्यान देते हैं

 

इसके प्रयोग से नाक की उचित सफाई में गले में पाई जाने वाली सभी गंदगी को शरीर से बाहर करते हैं उसके साथ ही हमारे पाचन तंत्र में पाए जाने वाले अपशिष्ट पदार्थों को भी शरीर से बाहर किया जाता है

 

शुद्ध क्रियाओं के अंतर्गत काफी सारी आती है जो हमारे नाक में पाचन संबंधी नली को साफ करने में सहायक होती है

 

शुद्ध क्रियाओं के प्रकार

 

नेति - नासिका द्वार को साफ व स्वच्छ रखने की प्रक्रिया होती है इसके अंतर्गत जलनेति व सूत्र नेति आदि क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है

 

धोती- यह क्रिया मुख से गुवाहाटी तक पूरी अमावस्य नदी को साफ करती है

 

नौली - यह क्रिया उदर के अंगों की मालिश कर उन्हें मजबूत बनाती है

 

बस्ती - यह क्रिया बड़ी आत को धोकर स्वच्छ बनाती है वे उन्हें मजबूत बनाती है

 

कपालभाति - जकरिया मस्तिष्क को शांत रखने व पवित्र बनाने की क्रिया होती है जो श्वसन क्रिया के साथ मिलकर मानसिक विकारों को दूर करती है

 

त्राटक - यह क्रिया एक बिंदु पर देखते हुए लगातार बयान करने से हमारे मस्तिष्क की केंद्र क्षमता को प्रभावित करती है यह हमारे मस्तिष्क के ध्यान की क्षमता को भी प्रभावित कर ती है

 

 

लाभ

 

यह न केवल हमारे आंतरिक अंगों को स्वच्छ रखती है बल्कि अनेकों प्रकार की बीमारियों से दूर रखने में भी सहायक होती है

 

इसका प्रभाव पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में किया जाता है जो हमारे शरीर को पोषक तत्वों को ग्रहण कर अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालते हैं साथी साथ उन अंगों की कार्यक्षमता पर भी इसका प्रभाव पड़ता है यह हमारे आंतरिक अंगों को मजबूत बनाने में भी लाभकारी होते हैं

 

यह हमारे आंतरिक अंगों को मजबूत बनाने में भी लाभकारी होते हैं

 

यह आंतरिक अंगों के साथ-साथ मस्तिक की केंद्रित क्षमता को प्रभावित करते हैं स्वसन संबंधित क्रियाओं में भी इसका लाभ होता है

 

 

 बंध

 

बंध का अर्थ होता है- गठ ,बंधन, ताला

 

अभ्यास के दौरान रूपी भाइयों को शरीर के किसी एक भाग पर बांध या कुछ समय के लिए रोक ली जाती है

 

बंद एवं मुद्राएं दोनों का एक साथ किया जाता है यह हमारे शरीर में वायु को नियंत्रित करती है और हमें अनेकों बीमारियों में लाभ पहुंचाने में सक्षम होती है यह शरीर में मस्तिष्क के विकारों को दूर करती है और शक्ति व ऊर्जा प्रदान करती है

 

इनके प्रकारों में भी वायु को अलग-अलग शारीरिक अंगों में रोका जाता है जिसका लाभ शरीर में देखने को मिलता है यह शरीर की कई आंतरिक बीमारियों में भी लाभकारी होते हैं वे शरीर की आंतरिक क्रियाविधि

को भी प्रभावित करते हैं

 

मुद्राएं

 

हमारे शरीर के अंदर पंचतत्व -  हवा, पानी, अग्नि , पृथ्वी एवं आकाश पाए जाते हैं जिनके असंतुलन होने पर हमें अनेकों प्रकार की बीमारियां या शारीरिक असंतुलन पैदा हो जाता है इन सभी तत्वों का हमारे शरीर में महत्वपूर्ण योगदान होता है मुख्य रूप से पंचतत्व हमारे हाथों की उंगलियों में भी पाए जाते हैं यह कहा जाए तो उंगलियों में इन तत्वों की विशेषताएं पाई जाती है

 

इन तत्वों को असंतुलन से संतुलित अवस्था में लाने के लिए मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है जो इन तत्वों को संतुलन में लाकर हमें अनेकों बीमारियों से बचाव कर सकें

 

मुद्राएं बंधुओं के साथ मिलकर कार्य करती है और पूरे शरीर को स्वस्थ बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है

 

हमारी पांचों उंगलियों में वायु तर्जनी उंगली में, जल छोटी उंगली में, अग्नि अंगूठे में. पृथ्वी अनामिका उंगली में और आकाश मध्यमा उंगली में होता है

 

मुद्राएं अलग-अलग हमें हाथों की उंगलियों के रूप में कार्य करते हैं जो बंधुओं को नियंत्रित करते हैं

 

 

 

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